Tuesday, August 7, 2007

''हाल नै पूछू, भगवानो बैमान छथिन

बेनीपट्टी (मधुबनी)। बाबू हाल नै पूछू, भगवानो बैमान छथिन। एहि विपत्ति सं नीक छलै ले सबके एके संग ल जैतै ने। .. कोनो देखेय वाला नै। सब किछु डूबि गेलै। आब जानो बचै छै की नै। यह उद्गार है बेनीपट्टी एवं मधवापुर प्रखंड के बाढ़ पीड़ितों के। धौंस, रातो एवं बछराजा नदी कहर बरपा कर लोगों के आशियाने तक को अपने साथ बहा ले गयी। सड़क-किनारे तटबंधों पर और अन्य जगहों पर विस्थापित होकर दिन काट रहे लोगों के सामने अंधेरा ही अंधेरा है। अपनी आंखों से अपनी बर्बादी का मंजर देख चुके बाढ़ पीड़ितों की आंखे के आंसू भी अब सूख चुके हैं। अब जान पर पड़ी है। कहते हैं कि कोई सुधि लेने वाला नहीं है। दाने-दाने को मोहताज हैं। एक-दो का नहीं प्रभावित हुए हजारों परिवार का यही हाल है। शनिवार को जब संवाददाता बेनीपट्टी प्रखंड के इलाकों में फैले घौंस नदी के पानी का जायजा लेने पाली गांव पहुंचे तो वहां खड़ी महिलाओं की आंखे बरबस ही चमकने लगीं। उन्हें लगा कि उनके आंसू पोंछने के लिए कोई सरकार अधिकारी आया है, परंतु जानकारी मिलने पर खुशी काफूर हो गयी। सोइली पुल के पास पाली गांव की रीता फफक-फफक कर रो पड़ी। उन्होंने बताया कि धौंस नदी ने इस बार भी पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। घर में रखे खाने-पीने का समान पानी में डूब गया। कहती हैं अब सिर्फ देहे बचल छै। उधर, इसी गांव के विस्थापित सुखड़ सहनी, रिझन सहनी, जुलूम यादव, छोटे मिश्र सहित सैकड़ों की तादाद में सड़क के किनारे रहने को विवश लोगों ने बताया-हमर सबके घर में पानि छै, घर गिर गेलै। लोगों ने कहा कि उनको कोई देखने वाला नहीं है। सड़क तहस-नहस हो चुकी है। एक गांव से दूसरे गांवों का सड़क संपर्क टूट गया है। बाढ़ पीड़ितों की हालत दयनीय बनी हुई है। पीड़ित परिवार भूख से छटपटा रहे हैं। नाव एवं पोलिथिन का भारी अभाव है। बाढ़ से हजारों फूस की झोपड़ियां धाराशायी हो चुकी है। अथाह पीड़ा के बीच भगवान भरोसे चल रही है जिदंगी की गाड़ी। मधवापुर प्रखंड के बाढ़ पीड़ितों की हालत गंभीर है। घौंस नदी का तटबंध तरैया, पतार एवं अंदौली गांवों में टूट जाने के कारण 4 पंचायतों की हालत बद से बदतर हो गयी है। चेहरे पर उदासी व आंखों में भविष्य की चिंता, पीने को पानी नहीं, सिर छिपाने का जगह नहीं, तन ढकने को कपड़े नहीं। बच्चे, बूढ़े, मर्द, औरत, माल-मवेशी व अमीर गरीब सब एक कतार में खड़े हैं। अधिकतर लोग बेघर हो गये हैं। तरैया गांव की कुंती देवी, राधा देवी, मरनी देवी ने रोते हुए कहा कि भगवान भी बेईमान हैं। सबको एक ही साथ ले जाते। विस्थापितों की चिंता है कि अब कैसे बनेगा घर? कैसे जलेगा चूल्हा? कहां से आयेगा अन्न? पानी से घिरे रहने के कारण कही निकलना भी मुश्किल है, लेकिन सरकार नाव की व्यवस्था नहीं कर रही है।

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